अनुक्रम
Navratri 2020 : नवरात्रों के इन पावन दिनों में दुनियाभर में माँ जगदम्बे को मानने वाले भक्त 9 दिनों का उपवास रखते हैं, और ना केवल उपवास साथ ही विधिविधान से माता की पूजा और अंत मे नवरात्रों के समाप्त होने पर कन्यापूजन या फिर कंचको का भी आयोजन करते हैं, कहां जाता हैं कि इस दौरान सच्ची श्रद्धा से माँ की आराधना करने वालो भक्तों की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती हैं, पर क्या कभी आपने यह जानने की कोशिश की हैं कि आखिर नवरात्रों के इन 9 दिनों में जिन विभिन्न शेरावाली माता के अवतारों की पूजा की जाती हैं|
वह कौनसे हैं और माता ने उन्हें क्यों धारण किया , साथ ही आप सभी को Briefingpedia परिवार की ओर से नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं !
तो आइए आज हम अपने इस लेख में गहनता से इस बात पर चर्चा करते हैं।
Navratri 2020 17 अक्टूबर 2020 शनिवार से शुरू होकर 25 अक्टूबर 2020 रविवार तक है |
१. शैलपुत्री माता
यह देवी दुर्गा का प्रथम अवतार हैं, पुराणों और शास्त्रों के अनुसार माता ने इस रूप में पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया था इसलिए माँ गदम्बे के इस अवतार का नाम “शैलपुत्री” पड़ा। शैलपुत्री माता अपने पूर्व जन्म में ब्रह्मा जी के बेटे “प्रजापति” दक्ष की पुत्री थी, और साथ ही इस दौरान इनका नाम “सती” था, और तब उनका विवाह महादेव यानी कि भगवान शिव से हुआ था।
परन्तु देवी सती ने अपने पिता के हवन कुंड की अग्नि में अपनी आहूति देकर अपने देह को त्याग दिया था, ततपश्चात उन्होंने धरती लोक पर शैलपुत्री का अवतार लिया। माँ शैलपुत्री की सवारी एक गाय हैं, माता के दाएं हाथ मे उनका मुख्य अस्त्र “त्रिशूल” और बाए हाथ मे कमल का पुष्प सुशोभित रहता हैं।
माँ शैलपुत्री की आराधना करने से भक्तों को अपार मनोशक्ति प्राप्त होती हैं।
◆ माता को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रों के पहले दिन इस श्लोक का जाप अवश्य करें, विधिविधान से इस श्लोक का 108 बार जाप करने से माता की असीम कृपा और अनुकम्पा प्राप्त होती हैं, श्लोक कुछ इस प्रकार हैं :-
|| वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् | वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||
Navratri 2020
२. भर्मचारिणी माता
यह देवी दुर्गा का द्वितीय अवतार हैं, माता के नाम “भर्मचारिणी” का सन्धि विच्छेद करने पर दो शब्द भर्म जिसका अर्थ तप या तपस्या होता हैं एवं चारिणी अर्थात आचरण करने वाली से हैं।
माता के इस अवतार के पीछे एक बेहद ही रोचक कथा हैं, जो कि कुछ इस प्रकार हैं:- दरअसल जब महादेव शिव ने सती के रूप में अपनी पत्नी को खो दिया था| तब वह बेहद ही परेशान एवं गमगीन हो गए थे| जिस कारण सम्पूर्ण देवलोक भगवान शिव के लिए चिंतित थे और महादेव को इस दुख से उबारने के लिए देवताओं ने माता “शैलपुत्री” को भगवान शिव की जीवन जीवन संगिनी बनाने का निश्चय किया और माता शैलपुत्री को भगवान शिव से विवाह में लिए प्रेरित किया|
जिसके लिए प्राय देवी शैलपुत्री ने हज़ार वर्ष तक बेहद ही कठोर तपस्या की ऐसी जो आज तक किसी ने ना कि हो और माता के इसी स्वरूप को “भर्मचारिणी” का नाम दिया गया। भर्मचारिणी माता के इस स्वरूप के दाहिने में जप की माला तो वही बाए हाथ मे कमंडल धारण किये हुए हैं
माँ शैलपुत्री की आराधना करने वाले भक्तों को विशिष्ट तौर पर कठिन से कठिन समस्या में भी अपने कर्तव्य पथ पर बने रहकर परिश्रम करने की शक्ति प्राप्त होती हैं| अगर आप भी अपने जीवन के कठिन समय से गुजर रहे हैं तो माता के इस रूप की उपासना करना बिल्कुल ना भूलें।
◆ माता को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रों के पहले दिन इस श्लोक का जाप अवश्य करें, विधिविधान से इस श्लोक का 108 बार जाप करने से माता की असीम कृपा और अनुकम्पा प्राप्त होती हैं, श्लोक कुछ इस प्रकार हैं :-
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥ शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी। शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
३. चन्द्रघन्टा माता
यह देविदुर्गा का तृतीय स्वरूप हैं, माता के मस्तक में अर्धचंद्र के आकार का घँटा बना हुआ हैं जिस कारण इन्हें “चन्द्रघन्टा” माता कहा जाता हैं, देवी दुर्गा के इस तीसरे अवतार में उनकी युद्ध मुद्रा की झलकियां देखने को मिलती हैं, चन्द्रघन्टा माता के 10 हाथ हैं जिंसमे से 5 हाथ त्रिशूल, गधा, धनुष एवं बांण जैसे अस्त्र एवं अन्य 5 पदम् यानी कमल , कमंडल , जाप की माला एवं दो हाथ योग मुद्रा में सज्जित हैं। माता के इस स्वरूप में उनकी सवारी एक बाघ हैं जो कि इस स्वरूप की आक्रमकता तो वही अन्य 5 वस्तुए माता के संतोष और धैर्य को प्रदर्शित करती हैं।
नवरात्रों के इन 9 पावन दिनों में तीसरा दिन अपना एक विशेष महत्व रखता हैं, देवी चन्द्रघन्टा इसलिए भी भक्तों के लिए खास हैं चूंकि उन्हें शीघ्र फल देने वाली देवी माना जाता हैं। कहा जाता हैं कि जो भी सच्ची श्रद्धा से माँ चन्द्रघन्टा की उपासना करते हैं उन्हें दोनों ही १. आध्यात्मिक और २. सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती हैं, पहली श्रेणी में भक्तों को विभिन्न प्रकार के अलौकिक दृश्यों , ध्वनियों एवं वस्तुओं का सुख प्रपात होता हैं, साथ ही धन-दौलत , पारिवारिक सुख एवं स्वास्थ्य जैसे सांसारिक सुखों का भी लाभ मिलता हैं।
◆ माता को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रों के पहले दिन इस श्लोक का जाप अवश्य करें, विधिविधान से इस श्लोक का 108 बार जाप करने से माता की असीम कृपा और अनुकम्पा प्राप्त होती हैं, श्लोक कुछ इस प्रकार हैं:-
वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्। कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम्। पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम्। प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम्।
४. कुष्मांडा माता
यह देवी दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप हैं, माता के इस स्वरूप के पीछे एक बेहद ही प्रचलित कथा यह हैं कि जब अंतरिक्ष काले और घने अंधेरे से भरपूर एक खाली स्थान था तब माँ जगदम्बे ने कुष्मांडा माता का अवतार लिया और अपनी शक्तियों से इस सृष्टि की रचना की , माता के नाम का शाब्दिक अर्थ भी इसी कथा की ओर इशारा करता हैं, “अंड़” अर्थात ब्रह्माण्ड और उसकी रचना करने वाली माता कुष्मांडा हैं।
इनका निवास स्थान सूर्य के मध्य में स्थित लोक में हैं जिस कारण इनकी त्वचा की कांति सूर्य की तरह ही बिल्कुल स्वर्णिम और चमकदार हैं , इनके तेज की बराबरी करना किसी भी अन्य देवी-देवता, मनुष्य और दानवों के बस में नही हैं, और तो और शास्त्रों के अनुसार धरती लोक के प्राणियों जैसे मनुष्य और जानवरों के तेज भी माता की ही छाया हैं, जिस कारण कुष्मांडा माता को “तेज या फिर प्रभा की देवी” भी कहा जाता हैं|
इतना ही नही माता की कुल 8 भुजाएं हैं इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता हैं| माता अपनी 8 भुजाओं में विभिन्न वस्तुए जैसे अस्त्रों , कमंडल , स्वर्ण कलश एवं कृपा की निधि जप माला हैं।
संस्कृत भाषा मे कुष्मांडा शब्द को कुम्हड़े यानी कि कद्दू से जोड़ा गया हैं, और ठीक इसी प्रकार माता कुष्मांडा को कद्दू की बली अत्यंत प्रिय हैं
माता की पूजा सम्पूर्ण विधिविधान से करने वाले भक्तों के जीवन से रोगों एवं शोक का नाश होता हैं साथ ही सच्चे श्रद्धलुओं को बल , तेज एवं आरोग्य की प्राप्ति होती हैं।
◆ माता को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रों के पहले दिन इस श्लोक का जाप अवश्य करें, विधिविधान से इस श्लोक का 108 बार जाप करने से माता की असीम कृपा और अनुकम्पा प्राप्त होती हैं, श्लोक कुछ इस प्रकार हैं:-
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्घ्
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्त्र गदा जपवटीधराम्घ्
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्।
५. स्कंदमाता
यह देवी दुर्गा का पांचवा स्वरूप हैं, वास्तव में स्कंद कुमार अर्थात भगवान कार्तिकेय की माता स्वरूपनिय देवी ही स्कंदमाता कहलाती हैं, स्कंदमाता के विग्रह यानी गोद में भगवान कार्तिकेय विराजमान होते हैं, स्कंद माता की कुल 4 भुजाएं होती हैं, जिंसमे से दोनों ओर के ऊपरी हाथों में कमल के पुष्प तथा बाए ओर की भुजा वर मुद्रा में हैं तो वही निचली दाहिनी भुजा से उन्होंने भगवान कार्तिकेय को पकड़ा हुआ हैं।
आपको कई चित्रों में स्कंद माता विशाल कमल पुष्प पर विराजमान भी नज़र आ सकती हैं इसलिए ही इन्हें पद्मासनादेवी भी कहा जाता हैं।
स्कंद माता के बारे में एक खास बात यह भी हैं कि आप जब कभी भी इनकी आराधना करते हैं तो भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की पूजा अपने आप ही हो जाती हैं चूंकि स्कंद माता के विग्रह में साक्षात भगवान “स्कंद” विराजमान होते हैं।
◆ माता को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रों के पहले दिन इस श्लोक का जाप अवश्य करें, विधिविधान से इस श्लोक का 108 बार जाप करने से माता की असीम कृपा और अनुकम्पा प्राप्त होती हैं, श्लोक कुछ इस प्रकार हैं :-
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया |
शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||
६. कत्त्यायिनी माता
यह देवी दुर्गा का छठा अवतार हैं, देवी माँ के इस स्वरूप के पीछे पुराणों और शास्त्रों से निकली एक बेहद ही रोचक कथा हैं, जो कि कुछ यूं हैं वास्तव में सदियों से पहले दक्षिण में एक ऋषि “कत” हुए जिनके पुत्र “कात्य” थे |
इन्ही ऋषि कात्य के गोत्र में एक कात्यान नामक ऋषि हुए | इन्ही कात्यान नामक ऋषि ने वर्षों तक गहन तपस्या की दरअसल वह चाहते थे कि मा जगदम्बे उनके घर मे एक पुत्री के रूप में जन्म ले ! साथ ही महिषासुर जैसे दैत्य का वध करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश (महादेव-शिव) ने अपने तेज से माँ जगदम्बे के छठे रूप कात्यानी को बनाया और उन्हें ऋषि कात्यान के घर मे एक पुत्री के रूप में जन्म दिया था।
माता का यह स्वरूप अत्यंत दिव्य और मनमोहक हैं, माता के इस स्वरूप के पास कुल 4 भुजाएं होती हैं जिंसमे कि ऊपरी दाहिनी भुजा अभय मुद्रा में तो वहीं निचली भुजा वर मुद्रा में हैं तो साथ ही बाई भुजा में कमल पुष्प और एक तलवार हैं, और माता की सवारी एक सिंह यानी कि शेर हैं।
माँ कत्त्यायिनी की सच्ची श्रद्धा से उपासना करने वाले भक्तों को चारों ही प्रकार के सांसारिक एवं आध्यात्मिक सुखों १. धर्म २. अर्थ ३. काम ४. मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
◆ माता को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रों के पहले दिन इस श्लोक का जाप अवश्य करें, विधिविधान से इस श्लोक का 108 बार जाप करने से माता की असीम कृपा और अनुकम्पा प्राप्त होती हैं, श्लोक कुछ इस प्रकार हैं :-
चन्द्रहासो”वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनीघ्
७. कालरात्रि माता
यह मा जगदम्बे का सातवां और अत्यंत ही आक्रमक अवतार हैं, देवी माँ का यह अवतार माता के रौद्र रूप को दर्शाता हैं, माता इस स्वरूप में युद्ध के लिए बिल्कुल तय्यार नज़र आ रही हैं।
इस स्वरूप में माता की त्वचा का रंग अंधेरे की तरह बिलकुल कृष्ण (काला) हैं, माता के बाल अत्यंत अस्त-व्यस्थ नज़र आ रहे हैं, माता के इस रूप के पास कुल 3 नेत्र यानी आंखे और 4 भुजाएं होती हैं जिंसमे बाए ओर की भुजाओं में बेहद ही भयंकर रक्तरंजित काटा और खड़ग हैं तो वही दाहिने हाथों में ऊपरी ओर वर मुद्रा और निचली भुजा अभय मुद्रा में हैं।
माता का वाहन एक “गधा” हैं। यू तो माता का यह रूप अत्यंत ही भयावय और रौद्र हैं, मगर इनके द्वारा प्रदत्त फल सदैव ही शुभ होता हैं, इसी कारण इनका नाम शुभांति भी हैं।
माँ कालरात्रि की सच्चे मन से आराधना करने वाले भक्तों को दुनियाभर के हर खतरे से रक्षा मिलती हैं,
कालरात्रि माता के केवल नाम लेने मात्र से सभी प्रकार के दैत्य , राक्षसों , भूत-प्रेत आदि के सायो से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता हैं
साथ ही माँ के भक्तों को अग्निभय , जलभय , जंतुभय , शत्रुभय , रात्रिभय आदि समस्यों से छुटकारा मिलता हैं।
माँ की आसीम कृपा और अपनी इन सभी परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए नीचे दिए गए दिव्य मंत्र का 108 बार विधिपूर्वक किसी ब्राह्मण की राय अनुसार मंत्र उच्चारण अवश्य करें :
(1) ‘ॐ कालरात्र्यैत नम:।’
(2) ‘ॐ फट् शत्रून साघय घातय ॐ।’
(3) ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा।’
(4)ॐ ऐं सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या अखिलेश्वरी।
एवमेव त्वथा कार्यस्मद् वैरिविनाशनम् नमो सें ऐं ॐ।।
(5) ॐ यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।।
संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमाऽऽपदः ॐ।
८. महागौरी माता
यह शेरा वाली माता की आठवीं स्वरोपम देवी हैं, इनका नाम “महागौरी” इनके भौतिक दृश्य के बारे में बहुत कुछ बताता हैं, दरअसल मा की त्वचा का रंग श्वेत यानी कि सफेद होता हैं , शंख , चक्र एवं चंद्रमा को माता की उपश्रुति माना गया हैं विशेष बात यह हैं कि माता की त्वचा की ही तरह उनके आभूषणों का रंग भी गौर यानी कि श्वेत हैं।
माता का वाहन एक श्वेत वृषभ यानी कि बैल हैं, महागौरी माता की कुल 4 भुजाए हैं जिंसमे की उनकी दाहिनी ओर का ऊपरी हाथ अभय मुद्रा एवं निचला हाथ उनका मुख्य अस्त्र त्रिशूल थामे हुए हैं, तो वही ऊपरी बाया हाथ अभय मुद्रा में और निचला हाथ डमरू पकड़े हुए नज़र आता हैं।
माता के इस स्वरूप के पीछे छिपि कथा कुछ यूं हैं कि जब माता ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए वन में भर्मचारिणी रूप में तपस्या की थी तो उनका रंग बेहद ही कला पड़ गया था! तत्पश्चात महादेव ने उनको गंगाजल से स्नान करवाया और इस बार उनके शरीर की प्रभा अत्यंत ज्यादा हो चुकी थीं, अब वह श्वेत रंग की हो गईं थीं।
आदिशक्ति महागौरीमां की उपासना करने वालो भक्तों के सभी सांसारिक पाप जैसे मदिरापान , मांसाहार , अधर्म आदि पाप मिट जाते हैं, और भविष्य में धर्मपत् पर चलने की प्रेरणा मिलती हैं, जिससे उनके भक्त सदैव के लिए इन बुराइयों से सुरक्षित हो जाते हैं।
◆ माता को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रों के पहले दिन इस श्लोक का जाप अवश्य करें, विधिविधान से इस श्लोक का 108 बार जाप करने से माता की असीम कृपा और अनुकम्पा प्राप्त होती हैं, श्लोक कुछ इस प्रकार हैं :-
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ – श्वेते वृषे समरूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।। – सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
९. सिद्धिदात्री माता
यह महाशक्ति माँ जगदम्बे का नौंवा स्वरूप हैं, जैसे कि इनके नाम से ही स्पष्ट होता हैं, यह सभी सिद्धियों को दने वाली माता हैं, इन्हीं आदिशक्ति की सिद्धियों के कारण साक्षात महादेव “भोले शंकर” का आधा शरीर एक नारी यानी महिला का हो गया था जिसके बाद वह जग में अर्दनरीश्वर के नाम से जाने गए थे।
यू तो सिद्धिदात्रि माता की मुख्य सवारी सिंह यानी एक शेर हैं, परन्तु माँ इस विशाल पदम् यानी कमल पुष्प पर भी विराजमान रहती हैं।
माता के इस स्वरूप के पास कुल 4 भुजाए हैं, जिंसमे की दाहिनी ओर क्रमानुसार उपर और नीचे चक्र और गधा हैं, तो वही बाई ओर उपर में एक शंख और नीचे एक कमल पुष्प हैं।
नवरात्रों के अंतिम दिन यानी ई नौवें दिन माता सिद्धिदात्रि की उपासना की जाती हैं, सच्चे मन से नौ के नौ नवरात्रों तक श्रद्धा से उपासना करने वाले भक्तों की माता सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं, एवं उन्हें सिद्धियां भी प्रदान करती है
◆ माता को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रों के पहले दिन इस श्लोक का जाप अवश्य करें, विधिविधान से इस श्लोक का 108 बार जाप करने से माता की असीम कृपा और अनुकम्पा प्राप्त होती हैं, श्लोक कुछ इस प्रकार हैं :-
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि | सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ||
पुनः आप सभी पाठकों को हमारी Website briefingpeida.com की ओर से Navratri 2020 की हार्दिक शुभकामनाएं, हम सभी दर्शकों और पाठकों के स्वास्थ की मंगल कामना करते हैं।
आगे भी इसी प्रकार के रोचक और ज्ञानपूर्ण लेख विशेषकर हिन्दी में पढ़ते रहने के लिए आज ही हमारी Website की notification bell को enable कर दे, ताकि भविष्य में आने वाले सभी लेखों से आप पुनः परिचित रहें।
नमस्कार