Dussehra kyu manaya jata hai in hindi – दशहरा से जुडी रोचक बातें जो आप नहीं जानते, रावण दहन क्यों होता है, जाने इसका रहस्य

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Dussehra kyu manaya jata hai: पिछली कई सदियों से भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया में dussehra का त्योंहार हर वर्ष बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता हैं, हर साल रावण का पुतला बनाया जाता हैं और अंततः इस दिन के अंत के साथ ही उसका दहन कर दिया जाता हैं! dussehra का एक दूसरा नाम विजयदशमी भी हैं, सुनी-सुनाई किस्से कहानियों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि dussehra बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार हैं|

इस दिन भगवान श्री राम ने महापापी रावण का वध स्वम् अपने हाथों से किया था और त्रेता युग से आजतक ऐसा ही चलता आ रहा हैं। मगर dussehra के इस त्योंहार की पीछे इससे भी कई ज्यादा बढ़कर कहानी हैं, तो आइए जानते हैं की Dussehra kyu manaya jata hai.

अनुक्रम

दशहरा क्यों मनाया जाता हैं ?

Dussehra kyu manaya jata hai

अगर हम साधारण भाषा में बात करें तो वास्तव में dussehra भारतीय प्रायद्वीप में हिन्दू संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाला एक मुख्य पर्व हैं, दरअसल इसी दिन त्रेता युग में अश्विन मास के शुक्लपक्ष की दशमी (१०) तिथि को महान तेजस्वी राजा और मर्यादापुरुषोत्त श्री राम जी ने लंकाधीश “दशानन” रावण का वध किया था, वैसे तो रावण एक महाज्ञानी और महायोगी राजा था परन्तु उसके कुकर्मों और अहंकार ने उसे मृतयु की भेंट चढ़ा दिया।

नवरात्रों के नौ दिनों तक चला राम-रावण युद्ध एक अत्यंत आक्रमक युद्ध था| जिसमें दोनों ही पक्षों को भारी हानि हुईं थीं, परन्तु भाग्य के अनुसार अंततः अष्टमी और नौमी तिथि की मध्यासन्ध्या को भगवान राम ने रावण का वध किया और दशमी तिथि को रावण का अंतिम संस्कार (दहन) किया गया|

जिसके बाद से जन सामान्य ने इसे एक सबक के तौर पर लिया और इस सीख के साथ हर वर्ष रावण के पुतले का दहन किया कि “चाहे बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हों और भले ही अच्छाई करने वाला कमजोर हो मगर अंततः विजय सच्चाई और अच्छाई की ही होती हैं!” और आजतक भी इसी सन्देश के साथ प्रत्येक वर्ष dussehra का त्योंहार देश भर में मनाया जाता हैं।

Dussehra kyu manaya jata hai दशहरा

dussehra के पर्व के पीछे छिपी पौराणिक कथा :

विजयदशमी यानी कि dussehra के पर्व को मनाने की वजह की चर्चा हमने पिछले अंक में कई आइए अब हम जानते हैं कि आखिर इस dussehra के पर्व का क्या पौराणिक जोड़ हैं, दरअसल प्राचीन पुराणों में dussehra के पर्व को लेकर एक बेहद ही रोचक और रोमांचक कथा हैं| जो कि कुछ इस प्रकार हैं:- एक बार की बात हैं, जब असुर श्रेणी में जन्मा एक असुर जिसका की नाम “महिषासुर” था, जिसका की सरल भाषा मे अर्थ “जंगली भैसा” होता हैं, भौतिक दृष्टि में यह अर्धजन्तु एवं मनुष्य के मेल जैसा प्रतीत होता हैं।

उसने श्रिष्टि के रचैता भह्मा जी की कढ़ी तपस्या की अंततः जब वर्षो के तप के बाद भह्मा जी पसन्न हुए और उन्होंने महिषासुर को दर्शन दिए तो उन्होंने महिषासुर को सदैव के लिए अमर हो जाने का वरदान दिया, जिसके बाद अधिकांश असुरों और स्वम् रावण की ही तरह महिषासुर ने भी अपनी सिद्धियों का अनुचित प्रयोग किया, वरदान मिलते ही महिषासुर ने सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपना आतंक फैला दिया, पृथ्वी लोक की यह हालत देख सम्पूर्ण देवतागण्ड अत्यंत ही चिंतित हो गए|

धरती पर यू विनाश होता देख परेशान देवातो ने देविदुर्गा “जगदम्बे” की आराधना की और अपनी यह व्यथा उनके पास लेकर पहुँचे, कई लोककथाओं के अनुसार यह माना जाता हैं कि माँ दुर्गा की रचना के पीछे देवताओं का बड़ा योगदान था, तब माँ दुर्गा को देवताओं ने अपनी अतिरिक्त शक्तियां और अस्त्र प्रदान किए जिसके बाद उन्होंने पृथ्वी पर आदिशक्ति कात्यायनी माता का अवतार धारण कर ऋषि कात्यायन के यहां एक कन्या के रूप में जन्म लिया, अंततः माँ कात्यायनी जो कि दुर्गा माता का ही एक रूप था, उन्होंने महिषासुर का संहार किया और जग में महिषसुर मर्दिनी कहलाई, यह थी dussehra के पर्व से जुड़ी एक प्राचीन पौराणिक कथा।

dussehra पर रावण के पुतले का दहन करना सही हैं ?

अक्सर अधिकांश लोग dussehra या फिर विजयदशमी के पर्व में रावण के पुतले के दहन को सही नही मानते हैं, उनके अनुसार रावण एक अत्यंत ही महान प्रकांड पंडित , चतुर्वेदी और महान शिवभक्त थे, जो कि सही भी हैं, ऐसे लोगो का तर्क यह हैं कि रावण के पुतले के दहन से शिव महिमा की भी तौहीन होती हैं, और तो और कुछ लोग इसे पाप कर्म से भी जोड़ कर देखते हैं, ऐसे में इस विषय पर विशेषज्ञों और धर्मदुरुओ की मिश्रित राय हैं|

जिंसमे से कुछ का यह मानना हैं कि रावण की महादेव के लिए तपस्या और शिवतांडव स्तोत्रम जैसे श्लोक श्रंखला की रचना महज शिवजी को प्रसन्न करने और वरदान प्राप्त करने मात्र के लिए ही थीं|

उसमें रावण का पापी पक्ष स्पष्ट तौर पर नज़र आता हैं, साथ ही सीता माता का अपहरण और अहंकार अधर्म के प्रमुख लक्षण के तौर पर देखा जाता हैं! , इस पक्ष के धर्मदुरुओ का यह मानना हैं कि dussehra पर रावण के पुतले का दहन करना बिल्कुल ही धर्मसम्वत और जायज़ हैं, साथ ही समाज को इससे से असत्य पर सत्य की विजय का एक अटूट सन्देश भी मिलता हैं, जिससे कि अन्य जनता भी सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होती हैं|

तो वहीं हिन्दू धर्म के जानकारों के दूसरे धड़े के लोगो का यह कहना हैं, की रावण एक अत्यंत ही तपस्वी राजा था उसने सम्पूर्ण इच्छाशक्ति के साथ महादेव की कड़ी उपासना की हर प्रकार की मुसीबत को सहन करते हुए वरदान प्राप्त किया, साथ ही यह लोग और भी तर्क देते हैं जैसे कि रावण के पास ज्ञान का अनन्त भंडार था, आज तक भी पृथ्वी पर कोई रावण जितना महाज्ञानी पैदा नही हुआ हैं|

रावण ने अपनी ज्ञान ज्योति के दम पर चारो ही वेदों का अध्ययन किया और “चतुर्वेदी” की संज्ञा प्राप्त की और तो और दैत्यों का राजा होने के बावजूद भी रावण ने उन चुनिंदा तपस्वियों की तरह ही त्रिशक्तियो- भृह्मा , विष्णु और महेश में से एक महेश यानी महादेव शिव से सिद्धियां प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की।

भारत में dussehra के विभिन्न आयोजन :

यू तो आजकल विश्व भर में जहां जहां हिन्दू “सनातन” धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं , वे अपने अपने ढंग और अंदाज में dussehra का पर्व मनाते हैं, मगर समूचे भारत मे भी कुछ चुनिंदा स्थानों में बेहद ही भव्य और उल्लास के साथ dussehra के पर्व का आयोजन किया जाता हैं, जिंसमे की मैसूर यानी वर्तमान में दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में स्थित एक स्थान जो कि पुनः एक बेहद ही सम्पन्न रजवाड़ा हुआ करता था|

आज उसका dussehra का आयोजन विश्वभर में अत्यंत ही प्रसिद्ध हैं, मैसूर के dussehra आयोजन की एक खास बात यह हैं भी हैं कि यहां आज भी ठीक उसी प्रकार का आयोजन किया जाता जैसा कि आज से 1000 साल पहले किया जाता था, यहां की खासियत हैं कि यहां आज भी वहीं प्राचीन माहौल तय्यार किया जाता हैं जैसा कि पहले था शहर की सभी गलियों-कूचों और चौराहों को रंग-बिरंगी विभिन्न प्रकार की झिलमिलाती रौशनियों से प्रकाशमय किया जाता हैं!

पूरे शहर में पुराने दौर की तरह हाथियों को विभिन्न प्रकार के आभूषणों और मखमली कपड़ों से सजाया जाता हैं, इन सुसज्जित हाथीयो के समहू का पूरे गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकाला जाता हैं, इस दिन प्रसिद्ध मैसूर के शाही महल को अलग अलग सजावटी चीजो से किसी नई नवेली दुल्हन की तरह सजाया जाता हैं, इसके साथ ही शहर में स्थानीय लोग रंगा-रंग नृत्य और पारंपरिक सांस्कृतिक कार्यक्रम से लुत्फ़नदोज होते हैं|

एक बेहद ही रोचक तथ्य यह भी हैं कि दक्षिण भारत मे स्थित द्रविड़प्रदेशों में रावण दहन नही किया जाता हैं, तो वही उत्तर भारत के एक राज्य हरियाणा में स्थित शहर चंडीगढ़ में एक व्यक्ति जिनका की नाम तेजिंदर चौहान हैं, उन्होंने रावण दहन कार्यक्रम आयोजन किया और दुनिया का सबसे ज्यादा विशाल रावण का पुतला जिसकी लम्बाई पिछले वर्ष यानी कि 2019 में 221 फीट थीं जबकि इससे पिछले साल यानी कि वर्ष 2018 में यह लम्बाई 11 फिट कम यानी कि 210 फिट थीं।

dussehra का त्यौहार कैसे मनाए ?

जैसा कि आप सभी जानते ही हैं, dussehra का त्यौहार किसी अन्य त्यौहार की अपेक्षा अपना एक अधिक विशिष्ट महत्व रखता हैं, इस दिन सर्वप्रथम सुबह प्रातःकाल शीघ्र उठ कर माँ दुर्गा और अन्य सभी आदिशक्तियो का विधिवत पूजन करें साथ ही दोपहर होने पर ईशान दिशा में शुद्ध एवं स्वच्छ भूमि पर चंदन, कुमकुम और मलका से धरती पर एक लेप करें अब बिलकुल स्वच्छ मन से इस मंत्र जय माता अमन चमन माता जी दशहरा मैदान अमन बेड़भा प्रदक्षिणा आदि के पश्चात सम्पूर्ण पूजन सामग्री एवं श्रध्हानुसार दान-पुण्य आदि को अपने पारिवारिक पंडित या फिर पुरोहित को दान कर दे |

एक खास बात यह हैं कि इस दिन संध्या काल मे नीलकंठ पक्षी का दर्शन बेहद ही शुभ माना जाता हैं।

dussehra 2020 की कुछ जरूरी बातें:

अधिकांश पाठकों को हर वर्ष की तरह ही इस साल भी यह असमंजस हैं, की दशहरे या फिर विजयदशमी का यह पर्व 25 अक्टूबर को हैं या फिर 26 ऑक्टोबर को हैं

इस वर्ष यानी 2020 में श्राद पक्ष के पश्चात अधिक मास लग गया जबकि पिछले साल यानी 2019 में सामान्य तौर पर श्राद पक्ष के समाप्त होते ही नवरात्र आरंभ हो जाते थे परन्तु इस बार ऐसा नही हुआ जिस कारण से आगे आने वाले सभी पर्वो एवं त्योहारों की तिथियों में असामान्य तौर पर परिवर्तन आया हैं, जो की असमंजस की असल वजह हैं।

जैसा कि हम सभी जानते हैं dussehra जिसे की हम विजयदशमी भी कहते हैं उसे दशमी (१०) तिथि को मनाया जाता हैं, तो आइए अब हम जानते हैं कि वास्तव में इस वर्ष दशमी तिथि कब से कब तक हैं:- वास्तव में अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुरूप देखे तो दशमी तिथि 25 अक्टूबर यानी कि रविवार के 11:14 AM (दोपहर) से लेकर 26 अक्टूबर को 11:33 AM (दोपहर) तक हैं।

तो आइए अब हम निश्चित रूप से dussehra 2020 की बात कर लेते हैं, जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि dussehra पर्व मर्यादापुरुषोत्त श्री राम द्वारा पापी रावण्ड के वध के अवसर पर मनाया जाता हैं और भगवान राम और रावण के मध्य चला दशमी तिथि को हुए युद्ध ये बाद अंततः आप्रघ्न काल में रावण का वध किया था और आप्रघ्न काल मे ही dussehra का यह त्योहार मनाया जाता हैं।

पुनः आप सभी पाठकों को हमारी Website briefingpeida.com की ओर से विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं, हम सभी दर्शकों और पाठकों के स्वास्थ की मंगल कामना करते हैं।

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नमस्कार

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